प्रेमचन्द साहित्य संस्थान की स्थापना वर्ष 1991 में गोरखपुर में महत्वपूर्ण साहित्यिक संस्थान और शोध केन्द्र के रूप में हुई थी।
हिन्दी के महान कथाकार प्रेमचन्द का गोरखपुर से बहुत गहरा सम्बन्ध रहा है। उन्होंने अपने जीवन के नौ वर्ष गोरखपुर में गुजारे। वह यहां पहली बार 1892 में गोरखपुर तब आए जब उनके पिता अजायब लाल यहां डाक विभाग में तैनात हुए। प्रेमचन्द ने यहां के रावत पाठशाला और मिशन स्कूल से आठवीं तक की शिक्षा ग्रहण की। इसी दौरान उन्हें साहित्य का चस्का लगा और वे लेखन की ओर प्रवृत्त हुए।
दूसरी बार वे नौकरी के सिलसिले में गोरखपुर आए और 19 अगस्त 1916 से 16 फरवरी 1921 तक यही रहे। वह दीक्षा विद्यालय में सहायक अध्यापक के रूप में कार्य कर रहे थे। उन्होंने यहां रहते हुए महत्वपूर्ण साहित्यिक कृतियों का सृजन किया। यह दौर राष्ट्रीय आन्दोलन की दृष्टि से ही नहीं वरन प्रेमचन्द के जीवन का भी महत्वपूर्ण समय था। इसी समय प्रेमचन्द उर्दू से हिन्दी की ओर आए। गोरखपुर में ही महात्मा गांधी का भाषण सुनकर उन्होंने सरकारी नौकरी से त्याग पत्र दिया और पूर्णकालिक लेखन व स्वाधीनता संघर्ष में प्रवृत्त हुए। प्रेमचन्द की रचनाओं में गोरखपुर की मिट्टी की सुगन्ध मौजूद है।
प्रेमचन्द साहित्य संस्थान ने प्रेमचन्द के विचारों के अनुरूप पूर्वी उत्तर प्रदेश में सांस्कृतिक जागरण के लिए कार्य कर रहा है। संस्थान ने प्रेमचन्द निकतेन ( प्रेमचन्द जिस सरकारी घर में 1916 से 1921 तक रहे ) में वर्ष 1996 में पुस्तकालय स्थापित किया जिसमें प्रेमचन्द की कृतियों के अलावा अनेक महत्वपूर्ण भारतीय लेखकों, विचारकों की कृतियां मौजूद है। संस्थान ने इस संस्थान को एक सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। संस्थान के प्रयास से इस स्थान पर वर्ष 2006 में प्रेमचन्द की रचनाओं पर आधारित भित्ति चित्र बनाए गए। यहां पर एक ओपेन थियेटर भी बना जहां पर नियमित रूप से नाटकों का मंचन होता है।
प्रेमचन्द साहित्य संस्थान भारतीय समाज की नई चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए ज्वलंत प्रश्नों पर राष्ट्रीय स्तर के सेमिनार, व्याख्यान आदि का आयोजन करता है। अब तक एक दर्जन राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किया जा चुका है। नवोदित प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने के लिए नियमित रचना गोष्ठियां की जाती हैं। संस्थान ‘ साखी ’ नाम की त्रैमासिक पत्रिका का प्रकाशन कर रहा है। इसके अलावा ‘ कर्मभूमि ’ नाम से प्रेमचन्द की कृतियों पर विमर्श के लिए एक अलग पत्रिका प्रकाशित की जाती है। हर वर्ष प्रेमचन्द जयंती पर प्रेमचन्द पार्क में संस्थान पर गोष्ठी, कहानी पाठ, कविता पाठ, नाट्य मंचन का आयोजन किया जाता है।
प्रो परमानन्द श्रीवास्तव संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष थे। उनका पांच नवम्बर 2013 को निधन हो गया। उनके निधन के बाद प्रख्यात कवि प्रो केदारनाथ सिंह संस्थान के अध्यक्ष है। प्रो केदारनाथ सिंह के निधन के बाद जाने माने कथाकार प्रो रामदेव शुक्ल संस्थान के अध्यक्ष हैं। प्रो सदानन्द शाही संस्थान के संस्थापक निदेशक हैं। स्वतंत्र पत्रकार मनोज कुमार सिंह 2015 से 2021 तक संस्थान के सचिव रहे। वर्तमान समय में गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर राजेश कुमार मल्ल सचिव हैं।