गोरखपुर, 31 जुलाई 2018। प्रेमचंद अपने समय के बड़े सवालों से टकराने वाले लेखक हैं। किसी भी लेखक के मूल्यांकन की सबसे बड़ी कसौटी यही होती है कि उसने अपने साहित्य में अपने समय, वर्तमान, समकाल, इतिहास के बड़े चुनौतीपूर्ण सवालों को उठाया है कि नहीं। प्रेमचंद इस कसैटी पर एकदम खरे उतरते हें। इसलिए वह जनता के नायक हैं। वह हमारे इतिहास के नायक थे और और हमारे अपने वक्त के भी नायक हैं।
प्रो. राय ने कहा कि आज पूँजीवादी साम्प्रदायिक साम्राज्यवादी राष्ट्रवाद के बरक्स प्रेमचंद के जनवादी प्रगतिशील राष्ट्रवाद को मजबूती से स्थापित करने का वक्त आ गया है। पूँजीवादी साम्प्रदायिक राष्ट्रवाद की कुल सचाई यही है कि वह साम्राज्यवादी शक्तियों के चरणों में लोट रहा है, नाक रगड़ रहा है। हमें जनता के राष्ट्रवाद की जरूरत है जिसके चिन्ह प्रेमचन्द के साहित्य में हैं।
प्रेमचंद के राष्ट्रवाद में-साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद और सामंतवाद का विरोध है। वह स्वदेशी की बात करते हुए कहते हैं कि जब हम अपना माल उत्पादित कर सकते हैं तो अपनी खनिज सम्पदा देकर विदेशों से माल क्यों खरीदें ? उनके लिए स्वराज का प्रश्न केवल अंग्रेजों की देश से विदाई नहीं थी बल्कि आर्थिक और भौतिक स्वराज था। इस तरह वह हमारी वैचारिक चेतना को दिशा दे रहे थे। प्रेमचंद के स्वराज का मतलब था-भौतिक, आर्थिक अजादी, उत्पादन के साधनों पर मजदूरों-किसानों, भारतीय नागरिकों का नियत्रण और उत्पादन के उपभोग की स्वाधीनता।
इस सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ कथाकार मदनमोहन ने की। संचालन प्रेमचन्द साहित्य संस्थान के सचिव मनोज कुमार सिंह ने किया। इस मौके पर देवेन्द्र आर्य, रवि राय, राजेश सिंह, फतेह बहादुर सिंह, जेएन शाह, अशोक चौधरी, मनोज मिश्रा, आनन्द पांडेय, अशोक श्रीवास्तव, शालिनी श्रीनेत, आलोचक एवं कवि चन्द्रेश्वर, चक्रपाणि ओझा, संदीप राय, फरूख जमाल, आशीष नंदन सिंह आदि उपस्थित थे।
अलख कला समूह की दास्तानगोई और इप्टा का नाट्य मंचनव्याख्यान के बाद अलख कला समूह ने प्रेमचंद की दो कहानियों शतरंज के खिलाड़ी और पंच परमेश्वर पर आधारित दास्तानगोई प्रस्तुत की। इस दास्तानगोई को वरिष्ठ रंगकर्मी राजाराम चैधरी ने लिखा था। निदेशक बेचन सिंह पटेल का था। इसमें मीर साहब की भूमिका अनन्या, मिर्जा की भूमिका अनीस वारसी, कथा वाचक की भूमिका आशुतोष पाल और ग्रामीण की भूमिका कुलदीप शर्मा ने निभाई। रूप सज्जा राकेश कुमार का था।
इसके बाद इप्टा की गोरखपुर इकाई ने प्रेमचंनद की कहानी रंगीले बाबू पर आधारित इसी नाम के नाटक का मंचन किया। नाट्य रूपान्तरण व निर्देशन डा. मुमताज खान का था। नाटक में एस रफत ने रसिक लाल, विनोद चन्द्रेश ने मास्टर साहब, रीना श्रीवास्तव ने मधुमती, सोनी निगम ने कमला, प्रियंका अग्रहरी ने बेटी, शिशिर बोस ने शाकिर, महेश तिवारी ने मनोहर लाल, धर्मेन्द्र दूबे ने सुन्दर लाल, सुगुण श्रीवास्तव ने दामोदर, शहनवाज ने बदरी, संजय प्रकाश सत्यम ने चंदू और आसिफ सईद ने उस्मान की भूमिका निभाई। गायन, नृत्य और वादन में प्रियंका मिश्रा, कुसुम देवी, स्वधा श्रीवास्तव, अभिषेक कुमार शर्मा, राम आसरे और विकास शर्मा शामिल रहे। संगीत व गीत संयोजन शैलेन्द्र निगम का था था जबकि परिधान व मंच परिकल्पना सीमा मुमताज की थी। रूप सज्जा राम बहाल की थी।